अनूपपुर के राजनगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 10 दिन के भीतर डॉक्टर तैनात करने और सुविधाएं सुधारने का आदेश; ग्रामीण स्वास्थ्य संकट पर हाईकोर्ट सख्त।
हाईकोर्ट की फटकार के बाद एमपी सरकार का वादा — 10 दिन में होगा राजनगर पीएचसी का कायाकल्प
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अनूपपुर जिले के राजनगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की बदहाली पर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है, जिसके बाद सरकार ने 10 दिनों के भीतर इस केंद्र की सुविधाओं में सुधार और डॉक्टरों की तैनाती का आश्वासन दिया है।
यह कदम एक जनहित याचिका (PIL) के बाद उठाया गया, जिसमें स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाही को उजागर किया गया था। राजनगर PHC में कुल 15 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 7 डॉक्टरों के हैं, लेकिन कोई स्थायी डॉक्टर तैनात नहीं है — जबकि यह केंद्र 50,000 से अधिक की आबादी को सेवाएं देता है।
मातृ स्वास्थ्य संकट: नर्सों पर निर्भर प्रसव और दवाइयों की जिम्मेदारी
पिछले 18 महीनों से यहां कोई स्थायी चिकित्सक नहीं है। सप्ताह में सिर्फ दो बार एक डॉक्टर आता है, बाकी समय नर्सें ही प्रसव करवाने से लेकर दवाइयां लिखने तक का काम कर रही हैं — जो गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।
साथ ही, केंद्र में ज़रूरी दवाओं की भारी कमी है, जैसे कि एंटी-रेबीज वैक्सीन तक नहीं है। इमरजेंसी सेवाएं तो और भी मुश्किल हैं क्योंकि स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने वाली सड़क भी जर्जर है।
हाईकोर्ट का सख्त आदेश: तुरंत हो स्टाफ की तैनाती और आधारभूत सुधार
याचिकाकर्ता विकास प्रताप सिंह की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को मेडिकल व पैरा-मेडिकल स्टाफ की तत्काल तैनाती का आदेश दिया है। राज्य सरकार की ओर से जो स्थिति रिपोर्ट दी गई, उसमें सिर्फ बीपी मॉनिटर और ईसीजी जैसी बुनियादी मशीनें होने की बात सामने आई। याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ गोठिया ने इस स्थिति को व्यक्तिगत स्वास्थ्य अधिकार के खिलाफ बताया।
ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र की गहरी समस्या उजागर
यह मामला मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली को उजागर करता है। न केवल डॉक्टरों की भारी कमी है, बल्कि बुनियादी ढांचे की स्थिति भी दयनीय है। हाईकोर्ट ने सरकार को इस महीने के अंत तक सुधारात्मक कदमों का प्रमाण पेश करने को कहा है — जिससे साफ है कि अब ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं न्यायिक निगरानी में हैं।