वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम पर एफआईआर को लेकर मान्यता प्राप्त पत्रकार संघ ने कड़ी नाराजगी जताई; अध्यक्ष विजय शंकर चतुर्वेदी ने इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया।

प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार, पत्रकारों को डराने की साजिश बताया; निष्पक्ष जांच की मांग

बिहार में वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर ने पत्रकारिता जगत में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। मान्यता प्राप्त पत्रकार संघ (रजि.) ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए इसे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है।

AAA मीडिया न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक अजीत अंजुम पर यह एफआईआर तब दर्ज की गई जब उन्होंने मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में बीएलओ स्तर पर हो रही अनियमितताओं को उजागर किया। उनकी रिपोर्टिंग तथ्यों पर आधारित थी, जिसे लेकर प्रशासन ने कार्रवाई की बजाय जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले पत्रकार पर ही कानूनी शिकंजा कसने की कोशिश की।

संघ के अध्यक्ष विजय शंकर चतुर्वेदी ने कहा, “अजीत अंजुम निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के प्रतीक हैं। उन पर एफआईआर दर्ज किया जाना लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक खतरनाक संकेत है। यह कदम न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि यह प्रेस की आज़ादी को दबाने की मंशा को भी उजागर करता है।”

उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका केवल सूचनाएं देने तक सीमित नहीं होती, बल्कि सत्ता की जवाबदेही तय करना भी उसका कर्तव्य होता है। यदि पत्रकारों को सच बोलने और जनता से जुड़ी समस्याओं को उजागर करने के लिए डराया-धमकाया जाएगा, तो यह पूरी व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।

पत्रकार संघ ने बिहार प्रशासन से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं:

  • अजीत अंजुम पर दर्ज एफआईआर की निष्पक्ष और तटस्थ जांच सुनिश्चित की जाए।
  • पत्रकारों को डराने-धमकाने और प्रताड़ित करने की प्रवृत्ति पर तत्काल रोक लगे।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी की पूरी सुरक्षा दी जाए।

संघ ने स्पष्ट किया है कि वह अजीत अंजुम जैसे साहसी पत्रकारों के साथ मजबूती से खड़ा है। “पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है। लोकतंत्र के प्रहरी को डराया नहीं जा सकता,” चतुर्वेदी ने जोर देते हुए कहा।

पत्रकार संघ ने देशभर के पत्रकारों, मीडिया संस्थानों और नागरिकों से अपील की है कि वे इस मामले को केवल अजीत अंजुम तक सीमित न समझें, बल्कि इसे एक व्यापक लोकतांत्रिक संकट के रूप में देखें और एकजुट होकर आवाज़ उठाएं।

यह सिर्फ एक एफआईआर नहीं है, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक है जो सच को दबाने, सवालों से बचने और सत्ता को निर्विरोध बनाए रखने की कोशिश कर रही है। पत्रकारिता की गरिमा और लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह समय चुप रहने का नहीं, बल्कि एकजुट संघर्ष का है।

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